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पेट / सांवर दइया

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घणी’ज फूठरी है तूं
लिख सकूं सैंकड़ूं गीत
थारै जोबन माथै
पण खाली रूप निरख्यां सूं
कांई सरै
सुण बावळी !
पेट तो रोटी सूं ई भरै ।