Last modified on 21 फ़रवरी 2011, at 11:17

तब्दीली / ब्रज श्रीवास्तव

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:17, 21 फ़रवरी 2011 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

पर्दे के गिरने
और फिर उठने के बाद भी
नहीं दिखाई दिया
जाना-पहचाना सा कुछ भी

जो सुनना चाहता हूँ
नहीं कहा जाता अब
जो देखना चाहता हूँ
नहीं दिखाई देता

तब्दीली गुज़र रही है इधर से
अवसान और प्रस्थान के बीच
निर्मित हो रही है एक रेखा।