Last modified on 5 मार्च 2011, at 11:52

आत्म अनात्म / भवानीप्रसाद मिश्र

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:52, 5 मार्च 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=भवानीप्रसाद मिश्र |संग्रह=शरीर कविता फसलें और …)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

समझ में आ जाना
कुछ नहीं है

भीतर समझ लेने के बाद
एक बेचैनी होनी चाहिए
कि समझ

कितना जोड़ रही है
हमें दूसरों से

वह दूसरा
फूल कहो कविता कहो
पेड़ कहो फल कहो

असल कहो बीज कहो
आख़िरकार
आदमी है !