Last modified on 5 मार्च 2011, at 17:07

सुकृत / चन्द्रकुंवर बर्त्वाल

Dr. ashok shukla (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:07, 5 मार्च 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= चन्द्रकुंवर बर्त्वाल }} {{KKCatKavita}} <poem> '''सुकृत (जीवन द…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

सुकृत (जीवन दर्शन)

सुख बनकर आते हैं
सदा सुकृत ही अपने,
दुख बन कर पीड़ित करते
दुष्कृत ही अपने,
परम सत्य है यह संसार
जहां माथे पर गिरते हैं
अपने ही पाप
सदा गर्जन कर, शुचि करते
जीवन केा अपने ही सुचि सपने
सुख बनकर आते हैं
सदा सुकृत ही अपने।
(सुकृत कविता का अंश)