Last modified on 19 मई 2008, at 18:08

धार / अरुण कमल

कौन बचा है जिसके आगे

इन हाथों को नहीं पसारा


यह अनाज जो बदल रक्त में

टहल रहा है तन के कोने-कोने

यह कमीज़ जो ढाल बनी है

बारिश सरदी लू में

सब उधार का, माँगा चाहा

नमक-तेल, हींग-हल्दी तक

सब कर्जे का

यह शरीर भी उनका बंधक


अपना क्या है इस जीवन में

सब तो लिया उधार

सारा लोहा उन लोगों का

अपनी केवल धार ।