श्रीराम स्तुति
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जयति
सच्चिदव्यापकानंद परब्रह्म-पद विग्रह-व्यक्त लीलावतारी।
विकल ब्रह्मादि, सुर, सि, संकोचवश, सिद्ध, संकोचवश, विमल गुण-गेह नर-देह -धारी।1।
जयति
कोशलाधीश कल्याण कोशलसुता, कुशल कैवल्य-फल चारू चारी।
वेद-बोधित करम -धरम-धरनीधेनु, विप्र-सेवक साधु-मोदकारी।2।
जयति
ऋषि-मखपाल, शमन-सज्जन-साल, शापवश मुनिवधू-पापहारी।
भंजि भवचाप, दलि दाप भूपावली, सहित भृृगुनाथ नतमाथ भारी।3।
जयति
धारमिक-धुर, धी रघुवीर गुरू-मातु-पितु-बंधु- वचनानुसारी।
चित्रकुटाद्रि विन्ध्याद्रि दंडकविपिन, धन्यकृत पुन्यकानन-विहारी।4।
जयति
पाकारिसुत-काक-करतुति-फलदानि खनि गर्त गोपित विराधा।
दिव्य देवी वेश देखि लखि निशिचरी जनु विडंबित करी विश्वबाधा।5।
जयति
खर-त्रिशिर-दूषण चतुर्दश-सहस-सुभट-मारीच-संहारकर्ता।
गृन्ध्र-शबरी-भक्ति-विवश करूणासिंधु, चरित निरूपाधि, त्रिविधार्तिहर्ता ।6।
जयति
मद-अंध कुकबंध बधि, बालि बलशालि बधि, करन सुग्रीवराजा।
सुभट मर्कट-भालु-कटक-संघट सजत, नमत पदरावणानुत निवाजा।7।
जयति
पाथोधि-कृत-सेतु कौतुक हेतु, काल-मन-अगम लई ललकि लंका।।
सकुल,सानुज,सदल दलित दशकंठ रण, लोक-लोकप किये रहित-शंका।8।
जयति
सौमित्र-सीता-सचिव-सहित चले पुष्पकारूढ़ निज राजधानी।
दासतुलसी मुदित अवधवासी सकल, राम भे भूप वैदेहि रानी।9।।
(जारी)