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मृत्युदेव / चन्द्रकुंवर बर्त्वाल

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मृत्युदेव
 (मृत्यु चक्र का चित्रण)
मेरे मुख पर क्यों हैं, तुमने अश्रु गिराए
मेरी आँखों केा क्यों ऐसे दृष्य दिखाये?
सूखी नदियों , सूने भवन, उजड़ते कानन
झरते फूल, दुखों से पीले पड़ते यौवन।
आज मधु निशा थी, मेरे अधरों पर।
फिरते थे पृथ्वी के सुख के स्वर आ आकर
मेरे नभ में घूम रहा था पुर्ण सुधाकर
मेरे कुंजों में मधु फिरता था गा-गा कर
(मृत्यु चक्र कविता का अंश)