Last modified on 6 मार्च 2011, at 14:52

सबसे पहले / सांवर दइया

Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:52, 6 मार्च 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= सांवर दइया |संग्रह= }} {{KKCatKavita‎}}<poem> वह समझाते हैं ल…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

वह समझाते हैं
लड़ो ।
धर्म है लड़ना
धरती और आदमी को
बचाने के लिए लड़ो ।

शुरू होती है लड़ाई
सब से पहले
रौंदी जाती है धरती
मरता है आदमी !


अनुवाद : नीरज दइया