सामगान
(राष्ट्रीयता की भावना का प्रदर्शन)
आर्यावर्त पिता हैं मेरे,
गंगा मेरी माता
यमुना मेरी बहिन
पुण्य के पावन जल से स्नाता।
पिता अन्न देते, माता हमको
जल से नहलाती
बहिन हाथ से हमको
शीतल जल का पान कराती।
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कृष्णमोहिनी छाया
हमको भी वे ही कंदन देते
बुद्वदेव के प्रिय पीपल
हमको भी लख कर हिलते
धन्य धन्य हमको भी
उस ही जननी ने जाया
जिसकी गोदी में
बालक बन कर निराकार था आया।
(सामगान कविता का अंश)