Last modified on 7 मार्च 2011, at 21:01

ज्योति-धाम / चन्द्रकुंवर बर्त्वाल

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:01, 7 मार्च 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= चन्द्रकुंवर बर्त्वाल |संग्रह=गीत माधवी / चन्द्…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

कविता का एक अंश ही उपलब्ध है। शेष कविता आपके पास हो तो कृपया जोड़ दें या कविता कोश टीम को भेजें ।

सूरज ने सोने के हल ले
चीरा नीलम का आसमान
किरणों ने हँस कोमल असंख्य
बोए प्रकाश के पीत धान
वे उगे गगन में, पल भर में
पक कर फैले इस धरणी पर