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श्रीराम स्तुति-2/ तुलसीदास

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श्रीराम स्तुति-
(राग गौरी)
(45)

श्रीरामचंद्र कृपालु भजु मन
हरण भवभय दारूणं।
नवकंज लोचन ,कंज-मुख ,
कर-कंज पद कंजारूणं।
कंदर्प अगणित अमित छवि,
नवनील नीरद सुंदरं।
पट पीत मानहु तड़ित रूचि शुचि
नौमि जनक सुतावरं।।
भजु दीनबंधु दिनेश
दानव-दैत्य-वंश-निकंदनं।
रघुनंद आनँदकंद कोशलचंद
दशरथ-नंदनं।।
सिर मुकुट कुंडल तिलक चारू
उदारू अंग विभुषणं।
आजानुभुज शर-चाप-धर,
संग्राम-जित-खरदूषणं।।
इति वदति तुलसीदास शंकर-
शेष-मुनि-मन-रंजनं।
मम हृदय कंज निवास करू,
कामादि खल दल गंजनं।।