Last modified on 19 मई 2008, at 18:27

कहाँ से फट फट कर गिरती हैं ध्वनियाँ ?

तने हुऎ तार टेलिफ़ोन के

धुनते जाते हैं हवा वादियाँ ।


तने रहें फैले रहें

टेलिफ़ोन तारों-से हम

खेतों मैदानों सड़कों खानों पर

पानी में भीगते

बर्फ़ से ढँके

धूप में चिलकते

आँधियों तूफ़ानों में झनझनाते

ध्वनियों से भरे रहे हम


ढोते रहे ध्वनियाँ

ढोते रहे सैकड़ों आवाज़ें

इसी तरह इसी तरह

इसी तरह इसी तरह

जोड़ते रहे गाँव गाँव

शहर शहर

आदमी आदमी ।