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दोहावली / तुलसीदास/ पृष्ठ 2

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दोहा संख्या 11 से 20

नामु राम को कलपतरू कलि कल्यान-निवासु।
जो सुमिरत भयो भाँग तें तुलसी तुलसीदासु।11।

राम नाम जपि जीहँ जन भए सुकृत सुखसालि।
तुलसी इहाँ जो आलसी गयेा आजु की कालि।12।

नाम गरीबनिवाज को राज देेत जन जानि।
तुलसी मन परिहरत नहिं घुर बिनिआ की बानि।13।

कासीं बिधि बसि तनु तजें हठि तनु तजें प्रयाग।
तुलसी जो फल सो सुलभ राम नाम अनुराग।14।

मीठो अरू कठवति भरो रौंताई अरू छेम।
स्वारथ परमारथ सुलभ राम नाम के प्रेम।15।

राम नाम सुमिरत सुजस भाजन भए कुजाति।
 कुतरूक सुरपुर राजमग लहत भुवन बिख्याति।16।

स्वारथ सुख सपनेहँु अगम परमारथ न प्रबेस।
राम नाम सुमिरत मिटहिं तुलसी कठिन कलेस।17।

मोर मोर सब कहँ कहिस तू को तू को कहु निज नाम।
कै चुप साधहि सुनि समुझि कै तुलसी जपु राम।18।

हम लखि लखहि हमार लखि हम हमार के बीच।
तुलसी अलखहि का लखहि राम नाम जप नीच।19।

राम नाम अवलंब बिनु परमारथ की आस।
बरषत बारिद बूँद गहि चाहत चढ़न अकास।20।