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दोहावली / तुलसीदास / पृष्ठ 13

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दोहा संख्या 121 से 130


श्री राम भरत लछिमन ललित सत्रु समन सुभ नाम।
सुमिरत दसरथ सुवन सब पूजहिं सब मन काम।121।

बालक कोसलपाल के सेवकपाल कृपाल।
तुलसी मन मानस बसत मंगल मंजु मराल।122।

भगत भूमि भूसुर सुरभि सुर हित लागि कृपाल।
करत चरित धरि मनुज तनु सुनत मिटहिं जगजाल।123।

निज इच्छा प्रभु अवतरइ सुर महि गो द्विज लागि।
सगुन उपासक संग तहँ रहहिं मोच्छ सब त्यागि।124।

परमानंद कृपायतनम न परिपूरन काम।
प्रेम भगति अनपायनी देहु हमहि श्री राम।125।

बारि मथें घृत होइ बरू सिकता ते बरू तेल।
बिनु हरि भजन न भव तरिअ यह सिद्धांत अपेल।126।

हरि माया कृत देाष गुन बिनु हरि भजन न जाहिं ।
भजिअ राम सब काम तजि अस बिचारि मन माहिं।127।

जो चेतन कहँ जड़ करइ जड़हि करइ चैतन्य।
अस समर्थ रघुनायकहि भजहिं जीव ते धन्य।128।

श्री रघुबीर प्रताप ते सिंधु तरे पाषान।
ते मतिमंद जे राम तजि भजहिं जाइ प्रभु आन।129।

लव निमेष परमानु जुग बरस कलप सर चंड।
भजसि न मम तेहि राम कहँ कालु जासु कोदंड।130।