दोहा संख्या 251 से 260
ग्यान कहै अग्यान बिनु तम बिनु कहै प्रकास।
निरगुन कहै जो सगुन बिनु सो गुरू तुलसीदास।251।
अंक अखुन आखर सगुन समुझिअ उभय प्रकार।
खेाएँ राखें आपु भल तुलसी चारू बिचार।252।
परमारथ पहिचानि मति लसति बिषयँ लपटानि।
निकसि चिता तें अधजरित मानहुँ सती परानि।253।
सीस उघारन किन कहेउ बरजि रहे प्रिय लोग।
घरहीं सती कहावती जरती नाह बियोग।।254।
खरिया खरी कपूर सब उचित न पिय तिय त्याग।
कै खरिया मोहि मेलि कै बिमल बिबेक बिराग।255।
घर कीन्हें घर जात है घर छाँडे़ घर जाइ।
तुलसी घर बन बीचहीं राम प्रेम पुर छाइ।256।
दिएँ पीठि पाछें लगै सनमुख होत पराइ।
तुलसी संपति छाँह ज्यों लखि दिन बैठि गँवाइ।257।
तुलसी अद्भुत देवता आसा देवी नाम।
सेएँ सेाक समर्पई बिमुख भएँ अभिराम।258।
सोई सेंवर तेइ सुवा सेवत सदा बसंत ।
तुलसी महिमा मोह की सुनत सराहत संत।259।
करत न समुझत झूठ गुन सुन होत मति रंक।
पारद प्रकट प्रपंचमय सिद्धिउ नाउँ कलंक।260।