Last modified on 16 मार्च 2011, at 12:36

कवितावली/ तुलसीदास / पृष्ठ 15

 
किष्किन्धा काण्ड

(समुद्रोल्लंघन)

जब अंगदादिनकी मति-गति मंद भई ,


पवनके पूतको न कूदिबेको पलु गो।

 
साहसी ह्वै सैलपर सहसा सकेलि आइ,


 चितवत चहूँ ओर, औरति को कलु गो।


 ‘तुलसी’ रसातल को निकसि सलिलु आयो,


कालु कलमल्यो, अहि-कमठको बलु गो।ं


चारिहू चरन के चपेट चाँपें चिपिटि गो,

 
उचकें उचकि चारि अंगुल अचलु गो।।


(इति किष्किन्धा काण्ड )