बाल लीला (राग बिलावल)
(माता) लै उछंग गोबिंद मुख बार-बार निरखैं।
पुलकित तनु आनँदघन छन मन हरषै।1।।
पूछत तोतरात बात मातहि जदुराई।
अतिसय सुख जाते तोहि मोहि कहु समुझाई।2।
देखत तुव बदन कमल मन अनंद होई।
कहै कौन रसन मौन जानै कोइ कोई।3।
सुंदर मुख मोहि देखाउ इच्छा अति मेारे।
मम समान पुन्य पुंज बालक नहिं तोरे।4।
तुलसी प्रभु प्रेम बिबस मनुज रूपधारी।
बालकेलि लीला रस ब्रज जन हितकारी।5।