Last modified on 20 मार्च 2011, at 14:09

ग़लती / मनमोहन

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:09, 20 मार्च 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मनमोहन |संग्रह= }} {{KKCatKavita‎}} <poem> उन्होंने झटपट कहा हम …)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

उन्होंने झटपट कहा
हम अपनी ग़लती मानते हैं

ग़लती मनवाने वाले ख़ुश हुए
कि आख़िर उन्होंने ग़लती मनवा कर ही छोड़ी

उधर ग़लती ने राहत की साँस ली
कि अभी उसे पहचाना नहीं गया