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गोपी बिरह(राग बिलावल) / तुलसीदास

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गोपी बिरह(राग बिलावल)

बिछुरत श्रीब्रजराज आजु,
 
इन नयनन की परतीति गई।
 
उड़ि न लगे हरि संग सहज तजि,
 
ह्वै न गए सखि स्याममई।1।


रूप रसिक लालची कहावत,
 
सो करनी कछु तौ न भई।

 साचेहूँ कूर कुटिल सित मेचक,
 
बृथा मीन छबि छीन लई।2।


अब काहें सोचत मोचत जल,

 समय गएँ चित सूल नई।

तुलसिदास जड़ भए आपहि तें,
 
जब पलकनि हठि दगा दई।3।