Last modified on 25 मार्च 2011, at 14:50

कौड़ी-कौड़ी माया / शतदल

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:50, 25 मार्च 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शतदल |संग्रह= }} {{KKCatNavgeet}} <poem> कौड़ी-कौड़ी माया जोड़ी …)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

कौड़ी-कौड़ी माया जोड़ी ।
बादल देख गगरिया छोड़ी ।।

सागर की चादर तानी थी,
चादर जो पानी-पानी थी ।

चादर ने ही समझाया फिर,
बेमतलब है भागा-दौड़ी ।।

अधरों-अधरों खेल-तमाशे,
पानी आगे पीछे प्यासे ।

साँसों की जंजीर हवा की,
आखिर इक दिन सबने तोड़ी ।।

झूठे-सच्चे सपन दिखाए,
कठपुतली-सा नाच नचाए ।

उम्र मिली थी कितनी थोड़ी-
वह भी रही न साथ निगोड़ी ।।

जितनी भी जिनगानी पाई,
हँसते-रोते खेल-बिताई ।

उसका नाच नाच दुनिया में,
जिसने तुझ से डोरी जोड़ी ।।
</poem