बचपन से सुनते आए हैं हम
पिता के पुरोहित से
पिता मरणासन्न होते और वह कहता लंबी है आपकी आयु रेखा
हम भूख से बिलबिलाते और वह कहता
पिता के हाथ से एक घर बनेगा
एक कुआँ खुदेगा
पचास के बाद सब कुछ बदल जाएगा
मेरी हथेली में कितनी साफ़ और सीधी रेखाएँ हैं
और कितनी उलझन मेरे जीवन में
एक उलझन यही कि कोई पुरोहित
नहीं मेरे जीवन में