Last modified on 18 जून 2007, at 11:20

बरगद / पूर्णिमा वर्मन

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:20, 18 जून 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पूर्णिमा वर्मन }} Category:गीत गुज़र गया तूफ़ान ढह गया वह ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)


गुज़र गया तूफ़ान

ढह गया वह बरगद

जो जीवन भर

साथ निभाने-सा लगता था


कौन कहाँ किसका होता है

यह दुनिया है

नश्वर जीवन

हर पल यहाँ

रोज़ कोई मिलता-खोता है

बारिश का झरना

कब झीलों का सोता होता है ?


काश! बीहड़ों में

अपना एक गाँव होता

जीवन की इस घनी धूप में

छाँव होता

नहीं पहाड़ी झरनों-सा कोई

मिलता-खोता

काश! गहन इस झील का कोई

सोता होता