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बारिश-2 / परवीन शाकिर

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पैरों की मेहँदी मैंने
किस मुश्किल से छुड़ाई थी
और फिर बैरन ख़ुश्बू की
कैसी-कैसी विनती की थी
प्यारी धीरे-धीरे बोल
भरा घर जाग उठेगा
लेकिन जब उसके आने की घड़ी हुई
सुबह से ऐसी झड़ी लगी
उम्र में पहली बार मुझे
बारिश अच्छी नहीं लगी