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तेज़ बारिश / कुमार सुरेश

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बारिश में केवल पानी नहीं
प्रेम भी बरसता है आकाश से

प्रेमोत्सव के लिए धरती
पहन लेती है हरी चूनर
पक्षी चटक रंग के कपडे
खुशी से फूल उठते है
गर्व से गौरवान्वित बीज

अनजाने ही
प्रत्येक धमनी में
बह उठता है
हारमोनों का ज्वार
डूबता-उतराता है मन
प्रेम के लिए व्याकुल प्राण
प्रेम ही मांगते है
जींवन उसकी विराट जिजीविषा में
मानता नहीं कोई बंधन
फैलता ही जाता है

ब्रह्म को विस्तीर्ण होने की
जीतनी गहरी अभिलाषा होती है
उस साल उतनी तेज़ बारिश होती है