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आतंकवाद / पूर्णिमा वर्मन

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असंतोष की कंदराओं में

उफनता है

आतंकवाद

लावे की तरह

फूटता है

बहुमंज़िली इमारतों पर

आग और धुएँ के साथ

लेटे हुए प्राण

असंख्य निर्दोष लोगों के


आतंक!

जो सत्तावाद, अव्यवस्था

और असमानता से जन्मता है

घना होता है

आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक दमन से

हवा पाता है

दिशाहीन सरकारों

और

लोलुप राजनीतिज्ञों से


बरसों-बरसों-बरसों

कोई इसे देखना नहीं चाहता

सब आँखें बंद रखना चाहते हैं

धृतराष्ट्र की तरह

जब तक

यह फूटता नहीं

वज्रास्त्र की तरह

आकाश से...