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बेतवा किनारे-1 / नागार्जुन

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बदली के बाद खिल पड़ी धूप

बेतवा किनारे

सलोनी सर्दी का निखरा है रूप

बेतवा किनारे

रग-रग में धड़कन, वाणी है चूप

बेतवा किनारे

सब कुछ भरा-भरा, रंक है भूप

बेतवा किनारे

बदली के बाद खिल पड़ी धूप

बेतवा किनारे

(1979 में रचित)