शाम का भय फैल रहा है
अकेले कमरे से
मैं भाग रहा हूँ
सूर्य का प्रकाश
उस छोर तक पहुँचकर
लौट रहा है
संयम शरीर छोड़ रहा है
तुम फिर याद आ रही हो
शाम का भय फैल रहा है
अकेले कमरे से
मैं भाग रहा हूँ
सूर्य का प्रकाश
उस छोर तक पहुँचकर
लौट रहा है
संयम शरीर छोड़ रहा है
तुम फिर याद आ रही हो