Last modified on 6 अप्रैल 2011, at 02:06

मौत-1 / प्रेम साहिल

Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:06, 6 अप्रैल 2011 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

साँस लेते ही
शुरू हो जाता है वह नरक
जिसे लोग जीवन कहते हैं

हर नरक किसी स्वर्ग की आस में ढोते हैं लोग

जीव के कोख में पड़ते ही
कोख में पड़ जाती है उसकी मौत भी
जीव के पैदा होते ही पैदा हो जाती है जो
बेशक नज़र नहीं आती, लेकिन
उसकी आहट तो सुनाई देती है जीव की साँसों में

साँस लेने ही से तो
शुरू हो जाता है वह नरक
जिसे लोग जीवन कहते हैं

हर नरक किसी स्वर्ग की आस में ढोते हैं लोग
जीव के कोख में पड़ते ही
कोख में पड़ जाता है उसका स्वर्ग भी
जिसे लोग मौत कहते हैं