Last modified on 11 अप्रैल 2011, at 13:20

पहाड़ियाँ-1 / प्रयाग शुक्ल

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:20, 11 अप्रैल 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रयाग शुक्ल |संग्रह=अधूरी चीज़ें तमाम / प्रयाग …)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

पहाड़ियों पर चढ़ी रहती है
एक झीनी परत
धूप की, हवा की,आकाश की ।

दूर से बिल्कुल अलग दिखती हैं पहाड़ियाँ ।
स्थिर, शांत ।

अपनी ओर क्यों खींचती हैं
बराबर पहाड़ियाँ !