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खिलौने / प्रमोद कुमार

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खेल में
घर में बन्द
ख़ूब खेले बच्चे

खिलौने की पिस्तौल में छिपी आई थीं सचमुच की पिस्तौलें
पढ़ाई और परीक्षाएँ भी लक्ष्य भेदनेवाली

अविभावकों को पता न चला
कि घर में खेलनेवाला कोई बाहरी भी है

खिलौनों में दूर से काम करनेवाले नियंत्रक थे
वे बच्चों की आँखों में दूर तक झाँक रहे थे
वे उनके व्यक्तिगत को क्रूर देख रहे थे अपने लिए
और मासूमियत उन्हें बहुत प्रिय थी

बच्चे खेल के मैदान के बिना खेल रहे थे
यंत्रों की चालाक आँखों से अनजान

अन्दर बड़ा हो
आया बाहर
भरी पिस्तौल की तरह बाहर आए सुरक्षित बच्चे
देश के सारे बड़े पद उनके लिए सुरक्षित थे
नियंत्रक उनके अन्दर आ बैठा था

पूरा देश भर गया हथियारों से
उनके आकार से पुलिस अनभिज्ञ रही,

मैदान की नीयत के विरुद्ध
जगह-जगह गोलियाँ चलीं
चलाने वाले कंधे पकड़े गए
वे कानून के अपराधी थे

खिलौने बनानेवाले
बेरोकटोक बनाते रहे
वे कानून सम्मत थे ।