Last modified on 15 अप्रैल 2011, at 13:31

आँख / संतोष अलेक्स

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:31, 15 अप्रैल 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=संतोष अलेक्स |संग्रह= }} {{KKCatKavita‎}} <Poem> चश्मेवाला डाक…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

चश्मेवाला डाक्टर ने
जाँचने के बाद कहा
जिनके आँख हैं वे देखें
जिनके कान हैं वे सुनें

मेरे मित्र की
एक आँख छोटी है
वह दुनिया को असंतुलित पाता है

माँ की आँखें
प्यार और दीनता भरी है

पिताजी की आखें
दिल की गहराइयों तक उतरती हैं

दृष्टि की सार की खोज में
मैंने प्रेमिका की आँखों में डुबकी लगाई
और दिन दहाड़े अंधा हो गया