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एक गीत, जो फूल बन खिलता / आलोक श्रीवास्तव-२

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मैंने इतने झरे पत्ते देखे हैं
खिले फूल देखे हैं
बहती नदियाँ देखी हैं
वीरान पहाड़ियाँ
निर्जन मैदान
बहारों का स्वागत करते दरख़्त
समंदर की ऊँची लहरें
गुँजान हवाएँ
रंगों में डूबी धरती की अम्लान छवि
उमड़ते बादल
सूनी राहें

काश गूँथ पाता
किसी एक गीत में
जो फूल बन खिलता
तुम्हारी हँसी में!