Last modified on 17 अप्रैल 2011, at 04:21

विभाजन रेखा / विमल कुमार

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 04:21, 17 अप्रैल 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= विमल कुमार |संग्रह=बेचैनी का सबब / विमल कुमार }} {{KK…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

मेरे प्रेम का रंग अलग था
औरों के रंग से
अलग थी उसकी भाषा
उसकी गन्ध
उसका स्वाद
अलग थी
उसकी दुनिया

तुम केवल उस प्रेम को जानती थी
जिसके थे प्रचलित अर्थ
प्रचलित रूप, प्रचलित छवियाँ

मेरा प्रेम अलग था
इसलिए दिखाई नहीं देता था
तुम्हें उस पर यकीन नहीं था
तुम अपनी दृष्टि से देख पा रही थी
यह दुनिया
मैं अपनी दृष्टि से

तुम्हारे स्वप्न अलग थे
मेरे स्वप्न से
तुम्हारी नींद अलग थी
मेरी नींद से ।

तुम मेरे प्रेम के रंग में
अपना रंग नहीं चाहती थी मिलाना

मैं भी अपने रंगों से
नहीं चाहता था
पीछे हटना ।

प्रेम हम दोनों करना चाहते थे
पर बीच में
थी एक विभाजक रेखा
सारी मुश्किलों का
रूप यही था ।

जब तक हम अपने विरुद्ध नहीं लड़ पाएँगे
किसी से प्रेम कैसे कर पाएँगे ? !