क्या हम दोनों मुक्त नहीं हो सकते
इस मृत्यु से
जो हमारा पीछा कर रही है
तुमने तो अपने घर में देखा है
मृत्यु को
तुम तो उसे अच्छी तरह जानती हो
फिर क्यों नहीं यह बात मानती हो
साथ मिलकर
लड़ा जा सकता है
किया जा सकता है सामना
इस मृत्यु का
प्रेम से ही
जीता जा सकता है उसे ?
रुक्मिनी !
अगर तुम अकेली ही लड़ना चाहती हो
तो लड़ो
नहीं कहूँगा तुम्हें
कि पकड़ लो मेरा हाथ
पर मैं रहूँगा
सदैव तुम्हारे साथ
किसी तरह की ज़रूरत पड़े
तो पुकारना ज़रूर !