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प्रेम-संवाद / विमल कुमार

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बिना मिले भी
क्या नहीं किया जा सकता
किसी से प्रेम
क्यों ज़रूरी है मिलना
सोचता हूँ

क्या बिना लिखे ख़त भी
नहीं किया जा सकता प्रेम
बिना बोले
बिना किए बातचीत
बिना घुमाए टेलीफ़ोन
बिना पूछे हालचाल
मौन में भी रहता है
प्रेम
और मौन से परे भी
होता है प्रेम

प्रेम दरअसल
एक संवाद है
इसलिए चाहता है आदमी
जिससे करता है वह प्रेम
उससे वह मिले, कुछ कहे
और हल्का हो जाए उसका मन
जो भरा हुआ है ज़“माने की गर्द से

या लिखे खत
या बात करे
या नहीं तो चुप ही रहे
कई बार तो उसकी तस्वीर
देखता भी है
संवाद कायम करता है उससे

किसी को याद करके भी
आदमी
कोशिश करता है
संवाद कायम करने की
यह अलग बात है
कि कई बार टूट जाता है
बीच-बीच में वह
संवाद

जैसे टूट जाती हैं
बीच-बीच में किसी
पुरानी फि’ल्मों की रीले
नहीं मिल पाती हैं तरंगें
आपस में चाहने पर भी

लेकिन याद रहता है हर किसी को
अपनी स्मृति के कोने में
किसी ने उसके साथ
ज़िन्दगी के किसी मोड़ पर
संवाद बनाने की
की थी कभी कोशिश
भले ही हो गई हो वह आज नाकाम

अगर प्रेम हो मन में कहीं तो
मरने के बाद भी
कायम रहता है यह इकतरफ़ा संवाद ।