सुमिर मन गोपाल लाल सुंदर अति रूप जाल,
मिटिहैं जंजाल सकल निरखत सँग गोप बाल।
मोर मुकुट सीस धरे, बनमाला सुभग गरे,
सबको मन हरे देख कुंडल की झलक गाल॥
आभूषन अंग सोहे, मोतिन के हार पोहे,
कंठ सिरि मोहे दृग गोपी निरखत निहाल।
'छीतस्वामी' गोबर्धन धारी कुँवर नंद सुवन,
गाइन के पाछे-पाछे धरत हैं चटकीली चाल॥