Last modified on 20 अप्रैल 2011, at 01:38

माँ-2 / रंजना जायसवाल

Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:38, 20 अप्रैल 2011 का अवतरण

तुम्हारा आँचल
कितना बडा़ था माँ
समा जाते थे जिसमें
मेरे सारे खेल
सारे सपने
सारी गुस्ताखियाँ...

मेरा दामन
कितना छोटा है माँ
नहीं समा पाता जिसमें
तुम्हार बुढा़पा...।