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बैलगाड़ी / केदारनाथ अग्रवाल

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बैलगाड़ी राज्य की
चल नहीं सकती प्रगति से दौड़ती।

एक ही तो बैल है!
दूसरा अब भी अलग है-दूर है!!
हाँकने वाला बड़ा हैरान है-
बैलगाड़ी में लदा है अन्न-वस्त्र;
देश के हर छोर में जा,
देश के हर एक जन को
नाज, कपड़ा बाँटना है;

देर होती जा रही है!
बैलगाड़ी राज्य की
चल नहीं सकती प्रगति से दौड़ती।

रचनाकाल: १६-०९-१९४६