Last modified on 24 अप्रैल 2011, at 15:11

वह / केदारनाथ अग्रवाल

Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:11, 24 अप्रैल 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=केदारनाथ अग्रवाल |संग्रह=कहें केदार खरी खरी / के…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

सच है तुमने
निरपराध को अपराधी-सा,
अफसरशाही के प्रकोप से,
नागपाश में जकड़ लिया है;
निस्सहाय है आज
किंतु वह नहीं मरा है-नहीं मरेगा!

सच है तुमने
जीवन का स्वर,
और सत्य का मुखर सबेरा,
कारागृह की दीवारों में कैद किया है;
निस्सहाय है आज
किंतु वह नहीं मरा है-नहीं मरेगा!


रचनाकाल: २६-११-१९५२