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दर्द / शैलेश मटियानी

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होंठ हँसते हैं,
मगर मन तो दहा जाता है
सत्य को इस तरह
सपनों से कहा जाता है ।

खुद ही सहने की जब
सामर्थ्य नहीं रह जाती
दर्द उस रोज़ ही
अपनों से कहा जाता है !