गीत को
उगते हुए
सूरज-सरीखे छंद दो
शौर्य को फिर
शत्रु की
हुंकार का अनुबंध दो ।
प्राण रहते
तो न देंगे
भूमि तिल-भर देश की
फिर
भुजाओं को नए
संकल्प-रक्षाबंध दो !
गीत को
उगते हुए
सूरज-सरीखे छंद दो
शौर्य को फिर
शत्रु की
हुंकार का अनुबंध दो ।
प्राण रहते
तो न देंगे
भूमि तिल-भर देश की
फिर
भुजाओं को नए
संकल्प-रक्षाबंध दो !