पयोदों की धारा गगन तल घेरे क्षितिज में
विलंबी होती है, धरणि उर का ताप तज के
बुलाती गाती है पल-पल, नए भाव उस के
बलाका माला से उठ कर उड़े और फहरे.
पयोदों की धारा गगन तल घेरे क्षितिज में
विलंबी होती है, धरणि उर का ताप तज के
बुलाती गाती है पल-पल, नए भाव उस के
बलाका माला से उठ कर उड़े और फहरे.