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विपर्याय / त्रिलोचन

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मैं ने कब कहा था

कविता की साँस मेरी साँस है

जानता हूँ मेरी साँस टूटेगी

और यह दुनिया

जिसे दिन रात चाहता हूँ

एक दिन छूटेगी


मैं ने कब कहा था

कविता की चाल मेरी चाल है

जानता हूँ मेरी चाल रुकेगी

और यह राह

जिसे दिन रात देखता हूँ

एक दिन चुकेगी


मैं ने कब कहा था

कविता की प्यास मेरी प्यास है

जानता हूँ मेरी प्यास तड़पेगी

और यह तड़प

जिसे दिन रात जानता हूँ

और और भड़केगी .