Last modified on 30 अप्रैल 2011, at 22:06

आया बसंत झूम के/रमा द्विवेदी

Ramadwivedi (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:06, 30 अप्रैल 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna | रचनाकार=रमा द्विवेदी }} <poem> आया बसंत झूम के,आया बसंत, अमवा…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)


आया बसंत झूम के,आया बसंत,
अमवा की डाल बैठ कोयल-
कूकती है झूम के आया बसंत,
आया बसंत झूमके,आया बसंत।

गोरी हुई दीवानी है,
पनघट को जानी-जानी है,
गगरी भरी उठाई झूम-झूम के,
आया बसंत झूम के,आया बसंत।

कलियाँ भईं सयानी हैं,
चेहरे पे कुछ रवानी है,
भौरें भी चूमते हैं झूम-झूम के,
आया बसंत झूम के, आया बसंत।

सरसों भी गदराई है,
अलसी भी खिलखिलाई है,
अरहर की जवानी भी आई झूम के,
आया बसंत झूम के,आया बसंत।

नदियाँ भी इठलाई हैं,
सागर से की सगाई है,
लहरों में ज्वार आया झूम-झूम के,
आया बसंत झूम के,आया बसंत।

प्रकृति भी लहलहाई है,
पतझर को दी विदाई है,
अमवा में बौरें आईं झूम-झूम के,
आया बसंत झूम के,आया बसंत।

पिऊ-पिऊ पपीहा कर रहा,
मन मोर का मचल रहा,
प्यासे की प्यास बढ़ गई है झूम के,
आया बसंत झूम के,आया बसंत।