Last modified on 26 जून 2007, at 09:55

नगरकथा / धूमिल

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:55, 26 जून 2007 का अवतरण (New page: सभी दुःखी हैं सबकी वीर्य-वाहिनी नलियाँ सायकिलों से रगड़-रगड़ कर पिंच...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)


सभी दुःखी हैं

सबकी वीर्य-वाहिनी नलियाँ

सायकिलों से रगड़-रगड़ कर

पिंची हुई हैं

दौड़ रहे हैं सब

सम जड़त्व की विषम प्रतिक्रिया :

सबकी आँखें सजल

मुट्ठियाँ भिंची हुई हैं.


व्यक्तित्वों की पृष्ठ-भूमि में

तुमुल नगर-संघर्ष मचा है

आदिम पर्यायों का परिचर

विवश आदमी

जहाँ बचा है.


बौने पद-चिह्नों से अंकित

उखड़े हुए मील के पत्थर

मोड़-मोड़ पर दीख रहे हैं

राहों के उदास ब्रह्मा-मुख

‘नेति-नेति' कह

चीख रहे हैं.