देव ! तुम्हारे पास ।
दिन दुखी जन का प्रतिनिधि बन,
आया था यह दास ।
लाया था उपहार रूप में,
केवल दुख निःश्वास ।
पर आशा भी रही चित्त में
और रहा विश्वास ।
किन्तु तुम्हारी दशा देखकर,
मन हो गया हताश ।
जग की व्यथा-कथा सुनने का
तुम्हें नहीं अवकाश ।
('ज्योतिष्मती' काव्य-संग्रह से)