Last modified on 4 मई 2011, at 23:08

पलकों का कँपना / अज्ञेय

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:08, 4 मई 2011 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

तुम्हारी पलकों का कँपना ।
तनिक-सा चमक खुलना, फिर झँपना ।
तुम्हारी पलकों का कँपना ।
मानो दीखा तुम्हें लजीली किसी कली के
खिलने का सपना ।
तुम्हारी पलकों का कँपना ।

सपने की एक किरण मुझ को दो ना,
है मेरा इष्ट तुम्हारे उस सपने का कण होना ।
और सब समय पराया है ।
बस उतना क्षण अपना ।
तुम्हारी पलकों का कँपना ।