Last modified on 5 मई 2011, at 19:31

ग़ज़ल-2 / मुकेश मानस

Mukeshmanas (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:31, 5 मई 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मुकेश मानस |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> इस समंदर का मुझे …)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)


इस समंदर का मुझे
साहिल नज़र आता नहीं

वीरान है कबसे शहर
कोई बशर गाता नहीं

दूर तक फैला अन्धेरा
कुछ नज़र आता नहीं

जो वक्त पीछे रह गया
वो लौट कर आता नहीं
2005