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ग़ज़ल-3 / मुकेश मानस

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जगता रहता सारी रात
सोचता रहता सारी रात

तन्हाई और सन्नाटे को
सुनता रहता सारी रात

अपने प्रश्नों के जवाब
ढूँढता रहता सारी रात

जाने कैसी उलझन है
उलझा रहता सारी रात
2005