Last modified on 6 मई 2011, at 13:02

हिसाब / महेश वर्मा

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:02, 6 मई 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=महेश वर्मा |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> ब्लेड से पेंसिल छी…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

ब्लेड से पेंसिल छीलते हुए
एक पूर्ण-विराम-भर कट सकती है उँगली
लेकिन अश्लील होता
बिल्कुल सफ़ेद काग़ज़ पर गिरना
अनुस्वार-भर भी
रक्त की बूँद का ।

नहीं आ पाई थी कोई भी ऐसी बात
कि उँगली से ही लिख दी जाती--
लाल अक्षरों में

उत्तापहीन हो चला था इतिहास
सिर्फ़ हवाओं की साँय-साँय सुनाई देती थी
कविताओं के खोखल से

सिर्फ़ प्रेम ही लिख देने भर भी
उष्म नहीं बचे थे हृदय, तब
प्रेमपत्रों को कौन पढ़ता ?

बचती थी केवल प्रतीक्षा ज़ख़्म सूखने की
कि पेंसिल छीलकर लिखा जा सके--
हिसाब ।